Wednesday, 3 June 2015

मेरी उलझन भी हो और सुलझन भी


जब 
प्यार तुमसे है,.....
भरोसा तुमपे है,...
कर्तव्य का निर्वाह तुम्हारे लिए है, ...
मेरी हर खुशी तुम्हारी है
हर सपना तुमसे ही जुड़ा है....
हर ख्वाहिश तुम्हारे लिए ही तो की है...
सुनो जरा
अब तुम ही बता दो
मै अपना गुस्सा,
अपने तनाव,
अपने अधिकार,
अपने दर्द,
बिखरे हुए सपनो के टुकड़े,
और अपने
एहसासो की गठरी लेकर
कंहा जाऊ?????
तुम
कितनी आसानी से
कह देते हो,..
मुझे अपने झमेलो से
दूर रखो,....
एक तुम ही हो
जो मेरी उलझन भी हो
और सुलझन भी,..... प्रीति सुराना

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