Wednesday, 3 June 2015

द्रौपदी के चीर सी,...

सुनो !!
कितना मुश्किल था ना
हमारा मिलकर जुदा होना,...
मानो कुछ पाकर
अचानक सबकुछ खोने जैसा,....

जबकि
हम दोनों जानते थे
फिर से बिछड़ना तय है,
क्यूंकि
इस मुलाकात का वक्त 
हमने ही तय किया था 
और 
जुदाई का वक्त भी,...
फिर भी 
रोते-तड़पते,...
मुड़मुड़कर देखते हुए,...
अपनी-अपनी 
छटपटाहटों को समेटकर,
एक ही पड़ाव से 
निकल पड़े हैं
विपरीत दिशाओं में,...
अपने-अपने आशियाने की ओर...
झोली मे खुशियां,
आंखो में आंसू,
दिल में उम्मीद 
और 
यकीन के साथ
इस बार मै बांध आई हूं 
एक डोर 
यादों की तुमसे,....
जो हमें जोड़े रखेगी 
हमेशा चाहे हम कहीं भी
रहें...
और सुनो!!!
अब करेंगे हम दुआ 
कि हमारी पवित्र प्रीत 
बढ़ती रहे
द्रौपदी के चीर सी,...
और मजबूत होता रहे 
हमारे दरमियान्
वो बंधन 
जो आज हमने बांधा है....प्रीति सुराना

1 comment:

  1. ईश्वर का हाथ मिले, सुन्दर कविता।

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