सुनो
कह दो
छतों और दीवारों से
बंद करदे ये कानाफूसी
कि फिर आएगी
काट खाने वाली काली रात,...
मैं डरती नहीं
रोज-रोज आने वाली
काली सूनी रातों से,..
आए तो आए
रोज की ही तरह,..
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,...
क्योंकि
मैंने कल्पनाओं का
सुन्दर आसमान सजा रखा है
मन के आँगन में,..
मेरे ख्वाबों
और ख्वाहिशों के सितारों से
सजी रातों ने
मुझे काली सुनी रातों से
लड़ना सिखा दिया है,...
और हां !!
दीवारों और छत को ये भी जरूर कहना
अंधेरा कोई अंजाम नहीं है,..
हर काली अंधेरी रात
एक रौशन सबेरे का आगाज़ होती है ,... प्रीति सुराना
Very Nice Poem.......
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