Saturday 9 May 2015

हर्फ़ दर हर्फ़


हर्फ़ दर हर्फ़ टटोलते रहे,.
वो "मेरा मन"
कुछ भी नहीं था मुझमें,. 
दर्द के सिवा,..,.........प्रीति सुराना

2 comments:

  1. और दर्द की व्यथा और भाषा तो मौन ही है

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