Monday, 6 April 2015

आस्था की तरह,..



ये सोच कर आई थी तुमसे मिलने कि बहुत कछ सीखा जिससे उस 'गुरु' से एक मुलाकात जरुरी है,..


मैंने संभालकर रखे थे

जिंदगी के वो सारे पन्ने जिनमें लिख रखा था वो सब जो तुमसे सीखा,..



तुमने उन सारे पन्नों को पढ़ा,..

जांचा,.. 

और किये अपने हस्ताक्षर,..


पर जब 

गुरुदक्षिणा की बात आई 

तो तुमने मांग ली इस आभासी दुनिया से परे वास्तविक दुनिया में उम्र भर की दोस्ती,..


हां मुझे स्वीकार है वास्तविकता के धरातल पर दोस्ती का अटूट बंधन

जिंदगी भर के लिए ,..


मैंने आभासी दुनिया में भी निभाया है,..

दोस्ती का रिश्ता 

जो टिका होता है विश्वास पर,..


अब 

मैं 

निभाऊंगी 

ये विश्वास 

आस्था की तरह,.. 


पर 

इस नए रिश्ते की 

शेष तमाम जिम्मेदारियां अब तुम्हारी या मेरी नहीं 

बल्कि हमारी होगी ,... प्रीति सुराना
 

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