Monday, 6 April 2015

"एक अखंड दीप दुआओं का"

मैंने कितना मना किया था न आपको,..

मत रखो पूरियाँ और सब्जी मेरे साथ,..
मैं सफर में कुछ नहीं खाऊंगी,.. 

और आपने क्या कहा था,...
चुपचाप रख लो जो दिया है,..
तुम्हे नहीं चाहिए तो दे देना किसी गरीब भूखे या जरूरतमंद को,...

हां मैंने खा ली है 
सारी पूरियाँ और सब्जी
और साथ में चुपके से रखी मिठाईयां और नमकीन भी,..

मुझे मिला ही नहीं 
कोई मुझसे ज्यादा गरीब 
जिसे आपकी ममता और स्नेह से बिछड़ना पड़ा हो,..,.

मुझसे ज्यादा भूखा,.
जिसका पेट 
आपकी मीठी सी झिड़कियां 
और नमकीन सी डांट खाकर भर जाता,..

और ना मिला 
कोई ऐसा जरूरतमंद 
जिसे जरूरत हो 
आपकी हिदायतों,..नसीहतों..और परवाह की,..

माफ़ करना मुझे,.
मैं विदा होते हुए चुरा लाई हूं 
घर के हर कोने से 
थोड़ी थोड़ी बिखरी हुई यादें,.

पर छोड़ आई हूं अपना बहुत कुछ आपके आंगन में,..
जैसे मां के आंगन से विदाई के वक्त 
बेटी छोड़ आती है 
थोड़ा सा अनाज मां के आंचल में,.. 
जिससे बाबुल की देहरी से नाता हमेशा जुड़ा रहे,.. 

और 
एक आखरी बात,..
आते वक्त मैं जला आई थी 
'एक दीया' घर देरासर में,
इस दुआ के साथ 
कि आपका घर हमेशा सुखी स्वस्थ और संपन्न रहे,.. 
और हमारा प्यारा सा रिश्ता भी,..

सुनो ना!
आप डालते रहना शुद्ध घी 
अपने स्नेह और विश्वास का 
ताकि जलता रहे 
एक अखंड दीप दुआओं का 
और वैसे ही अखण्ड रहे 
हमारा ये प्यार भरा रिश्ता हमेशा हमेशा,..प्रीती सुराना

1 comment:

  1. वाह प्यार की बारिश से भीगी हुई

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