Friday 10 April 2015

दिखाने के लिए,..

जख्म अपने हम जमाने से छुपाने के लिए,..
मुस्कुराते हैं जमाने को दिखाने के लिए,..

कहीं  अश्क कर दे न बयां हाल ए दिल ,.. 
वो ढूंढते हैं तरीके हमको रूलाने के लिए ,..

यूं तो मिलते है रोज ख्वाबों मे आकर हमसे,..
रखते है फासले औरों को बताने के लिए,..

किस्से उनके वैसे तो बहुत है हमारी य़ादों में,
पर नाम ही काफी हैं सबको सुनाने के लिए,..

किया था वादा इक रोज भूला देंगे उनको,
पर करते है रोज याद उनको भुलाने के लिए,..

जख्म अपने हम जमाने से छुपाने के लिए,..
मुस्कुराते हैं जमाने को दिखाने के लिए,..,....प्रीति सुराना

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन, बहुत बधाई
    कृपया मेरे ब्लोग पर भी आप जैसे गुणीजनो का मर्गदर्शन प्रार्थनीय है

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