Sunday, 19 April 2015

यादों के गांव में,.



                                                    

                                                    चल साथी चलकर बैठेंगे उस अमवा की छांव में,..
चल थोड़ा जीकर आते हैं हम यादों के गांव में,..
कैसे तुम मिलने आए थे 
शादी का करके इरादा,..
वो पल जब करके गए थे 
तुम जल्दी आने का वादा,..
वो मस्तियां वो शोर शराबा
हमारी शादी के चाव में,..
चल थोड़ा जीकर आते हैं हम यादों के गांव में,..
चल साथी चलकर बैठेंगे उस अमवा की छांव में,..
वो शादी के बाद हमारे 
सुंदर सपनों का घर सजना,..
फिर नन्ही नन्ही खुशियां
और उम्मीदों का गोद में पलना,..
साथ साथ चलना दोनों का 
हर सुख दुख के दांव में,..
चल थोड़ा जीकर आते हैं हम यादों के गांव में
चल साथी चलकर बैठेंगे उस अमवा की छांव में,..
हंसते-रोते,लड़ते-झगड़ते 
नोकझोंक करते करते,..
बीत गए हैं सत्रह बरस 
बातियां वतियां करते करते,..
लगता है संग बैठे थे जैसे 
कल ही जीवन की नाव में,..
चल थोड़ा जीकर आते हैं हम यादों के गांव में,..
चल साथी चलकर बैठेंगे उस अमवा की छांव में,...
आज मुझे लगता है जैसे
तुम बिन सब कुछ सूना है,..
साथ तेरे चलना है हरदम
साथ तेरे ही जीना है,..
बस गए हैं फूलों में खुशबू से 
हम एक दूजे के स्वभाव में,..
चल थोड़ा जीकर आते हैं हम यादों के गांव में,
चल साथी चलकर बैठेंगे उस अमवा की छांव में,..,...प्रीति सुराना

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