Friday, 20 March 2015

पिया बिन सावन

कुण्डलिया छंद

इन अंखियो को क्या हुआ, बरसे है दिन रात| 
सावन जैसी जेठ में,बे मौसम बरसात|| 
बे मौसम बरसात, रहे मन बस में कैसे| 
सूने है दिन रैन,पिया बिन सावन जैसे|| 
पल पल करती याद, पिया की उन बतियों को| 
उनकी ही है आस, तरसती इन अंखियों को||,.... प्रीति सुराना 

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