कुण्डलिया छंद
इन अंखियो को क्या हुआ, बरसे है दिन रात|
सावन जैसी जेठ में,बे मौसम बरसात||
बे मौसम बरसात, रहे मन बस में कैसे|
सूने है दिन रैन,पिया बिन सावन जैसे||
पल पल करती याद, पिया की उन बतियों को|
उनकी ही है आस, तरसती इन अंखियों को||,.... प्रीति सुराना
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