Thursday 19 March 2015

"सामंजस्य"

सुनो !

मुझे अपनी मर्ज़ से भी कोई हर्ज नहीं
क्यूंकि
मेरे मर्ज़ ने
मेरे इस यकीन को मजबूत किया है
तुम हर फर्ज़ बखूबी निभाते हो,...

इस तरह
हक और फर्ज़ के सही तालमेल से
एक दूसरे की
कमियों और खुबियों में सामंजस्य बिठाते हुए
जी सकेंगे एक बेहतर जीवन,...

मुझे और भी इतमिनान होता
अगर यही यकीन
जो तुम्हारी आंखों में
मैं पढ़ती हूं अकसर
कभी तुमने कहकर बताया होता,..

पर यकीनन
मैं अब भी खुश हूं,..
क्यूंकि खामोशी तुम्हारी कमी
और तुम्हारा प्यार हर कमी को पूरा करने वाली
तुम्हारी सबसे बड़ी खूबी,...

अब सचमुच मैंने सामंजस्य बनाना सीख लिया है,..... प्रीति सुराना

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