Tuesday, 10 March 2015

रात करवटें बदलते तो नहीं गुजरी,...????,

बिखरी जुल्फों 
और 
बिस्तर की सिलवटों को देखकर 
रातों के अफ़साने बनाने वालों,..
काश !
कभी सोचा होता, 
कहीं रात 
तनहा,..तड़पते,.. सिसकते,.. 
करवटें बदलते 
तो नहीं गुजरी,...????,......प्रीती सुराना

2 comments:

  1. कितना प्यार क्षलकता है इस कविता में. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति. आपको बहुत बधाई

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