Tuesday 10 March 2015

कहीं फिर से चोट तो नही लगी,,..????,

साहिल पर 
बैठे-बैठे
कंकर फेंककर,
सागर में उठती लहरों का 
मज़ा लेने वालों,..
काश !
कभी सोचा होता,
गहराई में छुपे जख्मों को 
कहीं फिर से चोट 
तो नही लगी,,..????,... प्रीति सुराना

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