Friday 20 February 2015

भीगा भीगा सा मेरा मन,..

सुनो!!!

ये 
बेमौसम बारिश,.. 
बेसबब नही है,..

कुदरत भी 
समझती है,..
मेरे जज़बातों को,..

जानती है,
भीगा भीगा सा मेरा मन,.. 
छलकने को आतुर है आंखो से,..

पर जताना नही चाहता,
अपना भीगापन,.. 
भीगी भीगी आंखो से,.. ,..प्रीति सुराना

2 comments:

  1. भर्तृहरि शतक श्लोक ८ में -जिन सुंदरियों ने अपने कंकणों और करधनी में लगे धुधरूओं के शब्द तथा पाजेब की मधुर झंकार से राजहंसिनी के कमलनाड एवं मंदगति को जीत लिया है ,ऐसी सुंदरियाँ भी से चकित म्रिगणी के नेत्रों के समान चंचल ,कटाक्ष बाणों से किसके मन को विवश नहीं करतीं |वैसे यह नीति है आप की रचना सुंदर Priti Surana Ji

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