अनउपजाऊ : मन का आंगन
हां!
सचमुच नही उगी
इस बार
मन के आंगन में
कविताओं की अच्छी फसल,..
बीज तो बोए थे चुनचुनकर
भावनाओं के,
प्रेम के,
खुशी खुशी,..
और
सींचा भी था भरपूर तुम्हारे दिए आंसुओं से ,..
साथ ही डाली थी खाद अपने दर्द की,.
कीटनाशक भी डाला था विश्वास का,..
क्यूंकि
सुना था प्रेम की कविताएं
पनपती हैं,
सिर्फ दर्द और आंसुओं की नमी में ही,..
लगता है
मिलावट थी
इस बार प्रेम और भावनाओं के बीजों
गुस्से,नफरत और अविश्वास की,..
शायद इसीलिये
इस बार
प्रेम की कविताओं की बजाय
उगी है बहुत सारी खरपतवार,..
सुना है
खरपतवार आंगन को अनउपजाऊ बना देता है,...
लगता है
अब नहीं उग पाएगी मेरे मन के आंगन मे कोई कविता,...प्रीति सुराना
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