सुनो!!!
मै जब भी लिखना चाहती हूं
सोचती हूं हर विषय पर
परिवार-समाज,
आचार-विचार,
देश-विदेश,
त्यौहार-व्यवहार,
नीति-अनीति,
अन्याय-अत्याचार,
अमीरी-गरीबी,
राजनीति-भ्रष्टाचार,
घटना-दुर्घटना,
धोखा-एतबार,
पर
मेरी हंसी,
मेरे आंसू,
मेरे सपने,
मेरे अपने,
मेरे दर्द,
मेरी खुशी,
मेरा गु्स्सा,
मेरा प्रेम,
मेरी यादें
मेरी फरियादें,
मेरे शब्द,
मेरे भाव,
सब तुम्ही पर आकर
ठहर से जाते है
और हर बार
तुम्ही से नया सफर शुरू करते हैं,..
या यूं कहूं मेरे सारे एहसास
उस गोल धरती की तरह है,.
जो अपने अक्ष पर घूम कर
कितनी ही बार
दिन को रात में
और रात को दिन में बदले,..
पर बरस बिताने हैं
तो चलना अपनी ही धूरी पर होगा,..
मैं जानती हूं
धरती अपनी धूरी से
जरा भी विचलित हुई
तो दुनिया में प्रलय निश्चित है
इसीलिए सब लेकर लौट आती हूं
हर बार तुम्हारे पास,
क्योंकि
तुम मेरी धूरी हो,..
और
तुम्हारे बिन मैं अधूरी,... :) ...प्रीति सुराना
बहुत बढ़िया मनोभाव ..
ReplyDeletethanks
DeleteJis tarazu se tolti ho use aj tum; usi tarazu se ek din tum bhi toule jaogi.; Gyanvan ban tu aage bda chal, teri bekhudi khud KHUDA ban rahegi.
ReplyDeletenice,..thanks
Deletethanks yashodhra ji,..thank u very much,..:)
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