वो वृक्ष
जिसने खो दी है
फल-फूल और छांव,
देने की क्षमता,..
उसे
अब भी
जीने के लिए,
मजबूर करती है,..
उम्मीद की
वो छोटी सी ज़मीन
जिसनें,
संभाले रखी हैं,..
आज भी
उसके
वजूद की जड़ें,
अपने भीतर,...
मेरी वीरान
जिंदगी में
बिल्कुल
तुम्हारी तरह,...
पतझड़ के बाद भी,.........प्रीति सुराना
सुन्दर आदरेया-
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