Tuesday, 14 May 2013

गलतफहमियां:--


एक जिदऩुमा छोटी सी गलती,
गलती से उपजी ढेर सारी गलतफहमियां,
गलतफहमियों से पनपे फासले,
फासलों की जगह बनी दरारें,
और दरारों का बढ़ते चले जाना,...

मैंने मान लिया था,
अब इन दूरियों का मिट पाना 
संभव नही,..
पर मानव स्वभाववश 
मैंने झांककर देखा,..

दरारों के बीच कई स्रोत फूट पड़े हैं,..
प्यार के,अपनेपन के,दर्द के,..
अपेक्षाओं के,उपेक्षाओं के, आस के,..
गुस्से के,जिद के,मुस्कुराहटों के,..
सुख के,दुख के,विश्वास के,..

मन में उम्मीद की कोपलें फूटी,..
जब सारे एहसासों के स्रोत मिलकर
बह रहे हैं नदी की तरह,..
हमारे दरमियान,..
इस रिश्ते को जीवन देने के लिए,...

जानती हू इन दरारों को पाटना अब मुमकिन नही,..
पर हम हमराह न बन सके तो क्या हुआ,..
एहसासों की इस नदी के दो किनारों की तरह 
हमसफर तो बन सकते हैं,..
अभी तो दूरियां कम ही है,..

हम थाम सकते हैं अब भी एक दूसरे का हाथ,.
चल सकते हैं हमकदम बनकर,..
आखिर हमारी मंजिल भी एक है,..
क्योंकि हर जिंदगी को एक ही अंतिम पड़ाव तक पहुंचना है,..
आखिर हर नदी को सागर में ही विलीन होना है,..

सुनो !!
अकसर नदियों पर पुल भी तो बनते हैं,.
चलो न थाम ले एक दूसरे का हाथ मजबूती से,..
शायद ये पुल 
किसी और की मंजिल का रास्ता बन जाए,.....प्रीति सुराना

3 comments:

  1. waaaah jindgi ke sari bate likhdi....
    draro me zakne ki himmat hr kisi me nhi hoti
    bhot khub waaaaaaah

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  2. चलो न थाम ले एक दूसरे का हाथ मजबूती से,..
    शायद ये पुल
    किसी और की मंजिल का रास्ता बन जाए,...

    उमीदें जीने की नयी राह दिखाती हैं एक नावोत्साह जगाती हैं.

    सुंदर प्रस्तुति.

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