पलकों पर कुछ अधूरे ख्वाबों का बोझ,
पलकों को उठने नही देता,..
और
पलकों तले कुछ टूटे हुए ख्वाब टीसते हैं,..
आंखों में बसे आंसूओं को पलकों ने पाबंद किया,
गालों पर ढुलकने से,..
तो
आजकल वो मन के आंगन में बरसते हैं,..
मन के आंगन में जाने कब से सूख रहे थे,
कुछ पुराने जख्म,...
आज
पलकों की सख्ती से फिर से ताजा हुए है,...प्रीति सुराना
शुभ प्रभात.....
ReplyDeleteपलकों पर
कुछ...
अधूरे ख्वाबों का बोझ,
ही पलकों कों
उठने नही देता,..
क्योंकि...
पलकों तले
कुछ टूटे हुए
ख्वाब टीसते रहते हैं,..
कविता अच्छी लगी.....
और हर अच्छी वस्तु को
हर अच्छा बच्चा तोड़-फोड़ कर देता है
सादर
:)
Deletethanks
Bahut hi khoobsurat rachna
ReplyDeletethanks
Deletebahut bahut acchi lagi apki ye rachna..
ReplyDeleteपलकों पर कुछ अधूरे ख्वाबों का बोझ,
ReplyDeleteपलकों को उठने नही देता,..
और
पलकों तले कुछ टूटे हुए ख्वाब टीसते हैं,..
Sajjan jee,
New Delhi-92
thanks
Deleteबहुत ही खुबसूरत रचना,आभार.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteक्या बात , बहुत अच्छा है
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