Thursday, 2 May 2013

अधूरे ख्वाबों का बोझ


पलकों पर कुछ अधूरे ख्वाबों का बोझ,
पलकों को उठने नही देता,..
और
पलकों तले कुछ टूटे हुए ख्वाब टीसते हैं,..

आंखों में बसे आंसूओं को पलकों ने पाबंद किया,
गालों पर ढुलकने से,..
तो 
आजकल वो मन के आंगन में बरसते हैं,..

मन के आंगन में जाने कब से सूख रहे थे,
कुछ पुराने जख्म,...
आज
पलकों की सख्ती से फिर से ताजा हुए है,...प्रीति सुराना

10 comments:

  1. शुभ प्रभात.....
    पलकों पर
    कुछ...
    अधूरे ख्वाबों का बोझ,
    ही पलकों कों
    उठने नही देता,..
    क्योंकि...
    पलकों तले
    कुछ टूटे हुए
    ख्वाब टीसते रहते हैं,..

    कविता अच्छी लगी.....
    और हर अच्छी वस्तु को
    हर अच्छा बच्चा तोड़-फोड़ कर देता है
    सादर

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  2. Bahut hi khoobsurat rachna

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  3. bahut bahut acchi lagi apki ye rachna..

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  4. पलकों पर कुछ अधूरे ख्वाबों का बोझ,
    पलकों को उठने नही देता,..
    और
    पलकों तले कुछ टूटे हुए ख्वाब टीसते हैं,..

    Sajjan jee,
    New Delhi-92

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  5. बहुत ही खुबसूरत रचना,आभार.

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  6. भावपूर्ण रचना

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  7. क्या बात , बहुत अच्छा है

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