आज यूं ही
दिन भर की उमस और गरमी के बाद,
चलते चलते
शाम ठंडी हवा में कुछ दूर निकल आई,
एक खेत के पास से गुजरते हुए
आम से लदे पेड़ों पर नजर गई,..
पंछियों का एक झुण्ड कंही से आकर
पेड़ के फलों को चोंच मारकर गिराने लगा,..
तभी मैंने देखा कुछ बच्चे जो वंहा खेल रहे थे,
उसमें से एक ने वहीं कचरे के ढेर में पड़ा
रबर का टुकड़ा उठाया,
उसे एक लकड़ी के टुकड़े पर फंसाया,..
एक कंकर उठाया और पेड़ पर निशाना लगाया,.
सारे पंछी उड़ गए,...
और फिर बच्चों ने उसी तरह
कंकरो से फल गिराना शुरू कर दिया,...
मैं दूर से देखकर आवक रह गई
जिन फलों को पछियों से बचाया,..
वो खुद ही उन फलों को तोड़ने लगे
ये मानव का कैसा व्यवहार है,......????
जो दूसरों से होने वाले नुकसान से तो बच जाता है,
पर खुद से होने वाले नुकसानो को नजरअंदाज कर देता है,..
ठीक वैसे ही जैसे
अपने धन को लुटेरों से बचाकर जुंए में गंवा देना,..
उन बच्चों ने मुझे ये सीख दी,..
कचरे में पड़ी चीजों का सही ढंग से प्रयोग करके
उसे उपयोगी बनाया जा सकता है,..
यानि कोई भी चीज बेकार नही होती,...
बस उसका सदुपयोग या दुरूपयोग
हमारे विवेक पर निर्भऱ करता है,..
आज फिर सिद्ध हो गया
"हर सिक्के के दो पहलू होते है,...!!"
"चाहे सिक्का खोटा ही क्यों न हो",......प्रीति सुराना
बस उसका सदुपयोग या दुरूपयोग
ReplyDeleteहमारे विवेक पर निर्भऱ करता है,..
आज फिर सिद्ध हो गया
"हर सिक्के के दो पहलू होते है,...!!"waah bahut sahi----
aagrah hai mere blog main bhi samarthak baney aabhar
thanks sir maine apka blog follow kiya tha,..
Deleteसर्वविदित है हर सिक्के के दो पहलू होते है,बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteहर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
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