उठ
जाग स्त्री
छोड़ के सारी शरम
तोड़ दे सारे भरम
मिटा दे जग की सब पीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर
मृगनयनी
सुलोचना
परी या हसीना
मत कर नुमाईश
कि तू है हुस्न की तस्वीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर
ममता की मूरत
कोमल हृदया
जननी या सृजनकर्ता
मत दिखा मन के भाव
कि तू है जीवन रक्षक प्राचीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर
अबला
बेचारी
कमजोर या लाचार
क्या क्या सुनेगी कब तक सुनेगी
सहेगी और कितने जहरीले तीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर
लक्ष्मी
शक्ति
सती या सरस्वती
पूजी गई तू हर रूप में
माना अच्छी है तेरी तकदीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर
दुर्गा
चंडी
गौरी या कालिका
हर बार लिया अवतार तू ने
जब भी बदली वक्त ने तासीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर
अत्याचार
दहेज उत्पीड़न
यौनशोषण या व्यभिचार
हर हाल मे पहनी है तूने
असीम दर्द की जंजीर
अब वक्त आ गया उठा शमशीर,......प्रीति सुराना
बेहतरीन भाव और कविता.
ReplyDeleteaabhar निहार रंजनji
Deleteबहुत सही
ReplyDeleteसादर
सशक्त रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन !!
अनु
dhanywad expression "anuji"
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteaabhar Onkarji
Deleteसशक्त रचना ... जागरूक करने वाला आह्वान
ReplyDeletedhanywad संगीता स्वरुप ( गीत )
Deleteयशवन्त माथुरji apka aabhar nayi purani halchal me sthan dene ke liye
ReplyDeleteवाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
ReplyDeletedhanywad Madan Mohan Saxenaji
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