Wednesday, 19 December 2012

अब वक्त आ गया उठा शमशीर


उठ 
जाग स्त्री
छोड़ के सारी शरम
तोड़ दे सारे भरम
मिटा दे जग की सब पीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर

मृगनयनी 
सुलोचना
परी या हसीना 
मत कर नुमाईश 
कि तू है हुस्न की तस्वीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर

ममता की मूरत
कोमल हृदया
जननी या सृजनकर्ता
मत दिखा मन के भाव
कि तू है जीवन रक्षक प्राचीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर

अबला
बेचारी
कमजोर या लाचार
क्या क्या सुनेगी कब तक सुनेगी
सहेगी और कितने जहरीले तीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर

लक्ष्मी
शक्ति
सती या सरस्वती
पूजी गई तू हर रूप में
माना अच्छी है तेरी तकदीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर

दुर्गा 
चंडी
गौरी या कालिका
हर बार लिया अवतार तू ने 
जब भी बदली वक्त ने तासीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर

अत्याचार
दहेज उत्पीड़न
यौनशोषण या व्यभिचार
हर हाल मे पहनी है तूने
असीम दर्द की जंजीर

अब वक्त आ गया उठा शमशीर,......प्रीति सुराना

12 comments:

  1. बेहतरीन भाव और कविता.

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  2. सशक्त रचना..
    बेहतरीन !!

    अनु

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  3. सुन्दर रचना

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  4. सशक्त रचना ... जागरूक करने वाला आह्वान

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    1. dhanywad संगीता स्वरुप ( गीत )

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  5. यशवन्त माथुरji apka aabhar nayi purani halchal me sthan dene ke liye

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  6. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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