कुछ वक्त से खुशियां रूठी हैं,
जीवन कुछ सूना सूना है,..
आज सब कुछ भूला के मैं,
कुछ उम्मीदों के दीप जला आई,..
रात फुटपाथ पे कुछ बच्चे,
ठंड में ठिठुरते सोए थे,..
सुबह सुबह सबसे पहले,
उन्हे कुछ कंबल गर्म उढ़ा आई,..
कुछ बच्चे सड़कों पर देखे,
जो कूड़े में खुशियां ढूंढ रहे थे,..
उन बच्चों से मिलकर,
थोड़ी मिठाई खिला आई,..
कुछ घर मैंने ऐसे देखे जंहा,
आज दीये तो क्या जलते,..
बस उनमें से कुछ एक घरों में,
चूल्हे आज जला आई,..
कुछ सालों से जुड़े हैं हम,
कुछ नेत्रहीन बच्चों से दिल से,..
कुछ वक्त साथ बिताकर उनके,
उनको अपनापन दे आई,..
पड़ोस के घर में एक मां ने,
अपने बेटे को खोया था,..
उनकी सूनी देहरी पर,
धीरज के दो दीप जला आई,..
एक मां कोख में पलती बेटी से,
छुटकारे को तत्पर थी,..
मां का मान बताकर उसको,
एक लक्ष्मी की जान बचा पाई,..
जीवन के सूने पलों में चुने,
मैंने आज खुशियों के कुछ पल,..
कुछ ऐसे अपने अपनो के संग,
मैं आज दीवाली मना पाई,....प्रीति सुराना
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