सुनो!
मैं लिखती हूं,..
अतीत की यादें और सपनो का कल,
तुम्हारे साथ गुजरे खट्टे मीठे पल,
कुछ अनुभव और ख्वाहिशें,
कुछ जज़बात और मन की बात,
और तुम हो कि
कह देते हो उसे कविता,
तुम्हे न तो
कविता की समझ है न रूचि,
पर तारीफों की पुरानी
आदत जो है,...
पर जनाब अब तो सुधर जाओ,
लोग हंसेंगे हम पर,..
क्योंकि
अब तो उम्र का वो दौर भी गुजर गया,
जब तुम्हे लगता था,..
मेरा चेहरा कमल और बातें गजल,
और हां!
एक सच कहूं,.
मैं तब भी जानती थी
कि तुम झूठे हो,...
और अब भी जानती हूं
कि मेरी बातों में कोई कविता नही है,...............प्रीति सुराना
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