कल कई दिनों बाद बाजार गई,सोचा ढेर सारी शापिंग करूंगी,....
बच्चों की फरमाईशें,घर की जरूरतों के सामान और रक्षाबंधन की तैय्यारी भी,....
सोचा सबसे पहले राखियां खरीद लूं,..
एक दुकान में पहुंची,दुकानदार एक महिला को राखीयां दिखा रहे थे,
रंग बिरंगी राखियों ने बरबस ही मुझे वहीं रोक लिया और मैं भी उनके साथ राखीयां देखने लगी,
तभी मुझे आकर्षित किया उन महिला और उनकीलगभग 8-9 साल की बच्ची की बातों ने,...
बच्ची ने अपनी मां से पूछा- मम्मी राखी के त्यौहार को रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों कहते हैं?
मां ने कहा-कयोंकि रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई को राखी बांधकर रक्षा का वचन लेती है,..
बच्ची ने कहा-पर मेरा भाई तो छोटा है,जब हम स्कूल जाते हैं तो मैं उसकी रक्षा करती हूं
और मम्मी,मामा तो बहुत दूर रहते हैं,..हमारी रक्षा तो पापा करते हैं,..
और पापा कहते हैं कि पुलिस हमारे शहर की और सैनिक हमारे देश की रक्षा करते हैं,..
ये सब सुनते सुनते पता नहीं मेरे विचारों का प्रवाह कब और किन-किन पगडंडियों पर
गतिमान हो गया,...और एक चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने से कितने ही दृश्य गुजर गए,..
टी.वी.,न्यूज़ चैनल,न्यूज़ पेपर,फिल्मों के कई दृश्य,गुवाहाटी,आसाम,काश्मिर,भोपाल,दिल्ली,उत्तरांचल आदि
शहरों के नाम,और घपला,घोटाला,भ्रष्टाचार,बलात्कार,व्यभिचार,सेक्स स्कैंडल,भ्रूण-हत्या,गर्भपात जैसे शब्द
कानों में गूंजने लगे खून-खराबा,चोरी-डकैती,लूट-मार जैसी वारदातो से रूबरू हुए लोगों की दहशत भरी नजरें
सब कुछ मेरी नजरों के सामने से बुरे सपने की तरह गुजरते ही मेरा सिर चकराने लगा,..
और मैं पसीने से लथपथ हो गई,,..
तभी दुकानदार ने मेरी तंद्रा भंग की-मैडम,आपको क्या चाहिए,आपकी तबीयत तो ठीक है ना?
मैंने हड़बड़ाकर इधर-उधर देखा वो बच्ची अपनी मां के साथ जा चुकी थी,..
मैंने खुद को संभाला और बेमन से कुछ राखियां खरीदी,...और कुछ खरीदनें का मन किया न हिम्मत बची,...
मैं वापस जाकर गाड़ी में बैठी और ड्राइवर से सीधे घर चलने को कहा,..ऱास्ते भर मैं बेचैन रही
मन में बार-बार सवाल उठते रहे कि कहां गई वो संस्कार,शिष्टाचार,भावनांए और शांति के पल,...
यंहा तो मानव ही मानव का दुश्मन बना बैठा है आज हर गली और चौराहे में ही नही बल्कि घरों में भी
"अबला से सबला" बनी नारी एक तरफ अपनी अस्मिता और अस्तित्व की सुरक्षा नहीं कर पाती
और दूसरी तरफ वही नारी,नारी की दुश्मन की भूमिका निभाने से भी नही चूकती,..
दैहिक शोषण,अंगप्रदर्शन,देह-व्यापार,व्यभिचार जैसे कुकृत्यों के लिए स्त्री पुरूष के बराबर ही जिम्मेदार है,..
जब कोई मर्यादा,संस्कार,नियम-कानून या बंधन मानवता के अस्तित्व को नही बचा पा रहा,..
रिश्तों ने कर्तव्यों का निर्वाहन छोड़कर अधिकारों का दुरूपयोग शुरू कर दिया है,..
स्वतंत्रता जब से स्वच्छंदता में बदली है तब से मानवता शर्मसार होकर अपना वजूद खोती जा रही है,..
तब क्या रक्षाबंधन जैसे पावन पर्व कलंकित होने से बच पाएगा?
उस छोटी सी बच्ची के मासूम से सवाल ने मेरे मन में उथल-पुथल मचाकर रख दी,
मानो सबसे नजरे चुराती हुई सी मैं घर पहुंची,सामने अपने बच्चों को देखकर मैं घबरा सी गई और
हुआ भी कुछ ऐसा ही बच्चों ने राखी का पैकेट हाथ से ले लिया और अचानक मेरे बेटे ने पूछ ही लिया
मम्मी राखी क्यों बांधते हैं??
मैंने झट से कहा-जैसे मदर्स डे,फादर्स डे, बर्थ डे,टीचर्स डे,वूमन्स डे,फ्रैंडशिप डे आदि मनाते हैं वैसे ही
ये भाई-बहन का डे है,उस दिन बहन भाई को राखी बांधती है,भाई बहन को गिफ्ट देता है और दोनो
एक-दूसरे को मिठाईयां खिलाते हैं
बेटे ने कहा-वाह!"राखी डे",
बेटी ने कहा-"ब्रदर सिस्टर रिलेशनशिप डे"
मैंने चैन की सांस ली कि बड़ी कुशलता से मैंने अपने बच्चों से खुद को बचा लिया,..
नहीं दे पाई वो संस्कारों और परंपराओं वाला जवाब जो उस बच्ची की मां ने उसे दिया था
और मेरी मां ने मुझे बतलाया था,...
वाकई जब "रक्षक ही भक्षक बने" तो "रक्षाबंधन के त्यौहार" का "राखी डे" या
"ब्रदर सिस्टर रिलेशनशिप डे" में ही बदल जाना ही सही है
चलो कुछ तो बदला जिसने मुझे इन सवालो से बचा लिया,.... प्रीति
मन विचलित हो गया...
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Deletebahut aabhar apka,.. raksha bandhan par dher saari shubhkamnaen,.. :)
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