तुम जो मेरी आँखों से मोहब्बत की बात करते हो
तो इस तरह इनमें नहीं बसते
आंसू बनकर ही आना था तुम्हे मेरी आंखों में
तो चुनते खुशी के रास्ते
तब मैं बसा ही लेती तुम्हे अपने मन के आंगन मे
जो तुम मुझ पर हक न भी जताते
दर्द बनकर जो आए हो तो मेहमान बनकर ही रहो
नाहक मुझ पर हक न जताओ
बहुत रह लिए हो मेरी जिंदगी मे आंसू बनकर
अब चले क्यूं नही जाते,
ये बिन बुलाए अनचाहे मेहमान ज्यादा देर तक
मुझसे संभाले नहीं जाते,.....प्रीति
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