Monday 19 March 2012

खुद से मुखातिब


मैं आज मुखातिब हुई कुछ पल खुद से,
कुछ बेचैन सी थी कुछ दिनो से 
जूझ रही थी अपने ही वजूद को लेकर 
अपने ही सवालों से,
कुछ पल बिताए खुद के साथ,
सुनी धीरज धरकर सारी बातें अपने मन की,
जो मैं दरकिनार कर जाती थी अकसर,
टटोला खुद के प्रति अपनी नीयत को,
तोला खुद को खुद के प्रति जिम्मेदारियों की कसौटी पर,
खुद को हिसाब दिया अपनी बिती जिंदगी के गुजरे लम्हों का,
हर खुशी,हर गम का,आंसू और हंसी का,
मंजिलों और रास्तो का,अपनो और परायों का,
बांटा अपने हर दर्द को खुद से,
जाना हर ख्वाहिश,हर सपने को,
परखा अपने अहम् को,
दुलारा अपनी संवेदनाओं को,
स्वीकारा अपनी गलतियों को,
तलाशा अपनी कमजोरियों को,
सहेजा अपनी अच्छाईयों को,
समेटा अपने बिखराव को,
पसारे अपनी कल्पनाओं के पंख,
खोली अपने अंदर पल रही ग्रंथियां,
सुलझाई अपनी उलझने,
फिर 
बाहरी दुनिया के साथ सामंजस्य बिठाते हुए 
अपनी सारी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी
अपने मन का खयाल रखने के लिए 
बनाई एक फेहरिश्त,
जिसमें रखा   
मन की हर बात को प्राथमिकता के क्रम में 
जो मेरी जिंदगी को बेहतर जीने के लिए जरूरी है 
कर लिया है आज ये फैसला कि   
अब जिऊंगी मै इसी के मुताबिक 
ताकि रख सकूं संतुलन 
अपने अंदर और बाहर की जिंदगी में,...
और जी सकूं बेहतर जिंदगी
और अब मैं महसूस कर रही हूं खुद को तरो ताजा,...
और बढ़ा लिए कदम 
अपनी पुरानी राह पर एक नई उर्जा के साथ 
फिर एक बार,...प्रीति

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