Friday, 16 March 2012

खुद को गुनते हुए



कुछ दिनो पहले तक 
सर्द मौसम में 
बड़ा अच्छा लगता था 
सुबह से दोपहर तक 
गुनगनी धूप में बैठकर 
अपने दैनिक कार्यों को करते हुए
खुद को गुनना,....

पर जाने क्यूं 
पिछले कुछ दिनो से तपिश
कुछ बढ़ती हुई सी 
असहनीय सी महसूस होती रही है,...

मैंने अपने मन से पूछा 
सच बता कि ये गरमी
बाहर के मौसम की है 
या भीतर कुछ बदला है,...

मन ने कहा 
बाहर का मौसम तो
धीरे-धीरे बदल रहा है 
पर भीतर कुछ तो है जो उबल रहा है,..

बहुत सोचा कि
अब कैसे करूं इन हालतों का सामना???

मन ने कहा
भीतर सुलगते हुए
जज़बातों की आंच तो अब तेज हो चली है,
क्यूं न बदले मौसम को अपनाकर 
धूप में बैठने का वक्त बदल लो,
क्यूकि गरमी की शामों में पसीने को छूकर जाती हवा 
बदन को बहुत सुहाती है, 
शायद बाहर के मौसम की ठंडक 
भीतर के उबलते मौसम को बदलने मे मददगार होगी, 

आज
मैने पूरी शाम
छत की मुंडेर पर गुजारी,
मन मे सुलगते हुए
जज़बातों की तपिश को महसूस करते हुए 
खुद को गुनते हुए,.........प्रीति




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