Wednesday 7 March 2012

न रहे बेरंग


आज अरसे बाद होली को लेकर कुछ भाव उठे मन में,
सच कहूं तो होली के रंगों को मैं सालों पहले छोड़ आई थी,
जिंदगी के उस पड़ाव के साथ जिसे हम बचपन कहते हैं,
जब होली के रंगों के लिए साल भर इंतजार किया करती थी,
क्यूंकि तब मुझे जिंदगी के अनगिनत रंगों का अर्थ नहीं पता था,
आज सोचती हूं तो लगता है कि कितने रंग हैं जिंदगी में,
जिसे हम हर पल जीते हैं,
हर रोज हम एक नए रंग को महसूस करते  हैं,

बहुत छोटी थी
तब मुझे पसंद थी
रंग-बिरंगी फ्राकें,टाफियां,गुब्बारे,पैंसिल,
तितलियां,फूल,इंद्रधनुष और तिरंगा,
बस कुछ बेरंग थे तो वो थे
पानी और हवा,

जब कुछ बड़ी हुई
तो कुछ नए रंग आए जीवन में,
जैसे सतरंगी सपने,
व्यवहार में भावनाओं के नौ रसो के नौ रंग,
प्रकृति के अनेक रंगों को समझा और जाना,
अंबर नीला,वृक्ष हरे,धूप सुनहरी,
शाम रतनार,रात काली,सुबह उजियाली,
बस कुछ बेरंग थे तो वो थे
पानी और हवा,

फिर आया दिल में चाहत का गुलाबी रंग,
हाथों में मेंहदी का हरा रंग,
बदन पे हल्दी का पीला रंग,
फिर सुहाग के जोड़े का सुनहरा लहंगे के साथ केसरिया चुनरी,
हाथों में ऱंग-रंग की चूड़ियां,
माथे पर लाल बिंदिया के साथ मांग में सिंदूरी सपने,
बस कुछ बेरंग थे तो वो थे(आंखों के आंसू यानि)
पानी और हवा,

फिर आए जीवन में नए रिश्तों के रंग,
रसोई में नित नए मसालों और पकवानों के रंग,
जिम्मेदारियों के रंग
पल-पल बदलते अहसासों के रंग
एकपल में हंसी और दूसरे ही पल गम,
कभी मुस्कुराहट तो कभी फिर आंखें नम,..
बस कुछ बेरंग थे तो वो थे(आंखों के आंसू यानि)
पानी और हवा,

पर आज मैंने सोच लिया
कि फिर समेट लूंगी अपनी अंजुरी मे जिंदगी मे
अब तक मिले सारे रंग  मिला दूंगी
अपने सुख दख के साथी आंसुओं को उनमे
और मल दूंगी अपने अपनों के गालों पर प्रेम से,
और बचे हुए रंगों को उड़ा दूंगी हवा में,
ताकि फिजाएं रंगीन हो जाए,...
इस बार मैं जी भरकर खेलूंगी होली जीवन के सब रंगों से
ताकि इस होली पर
न रहे बेरंग ये
पानी और हवा ,...,.....प्रीति सुराना

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