Sunday, 26 February 2012

मेरे हमसफर



सुनो
मेरे हमसफर,
कल हमारी कुछ बातें नींद के आवेग में अधूरी रह गई थी,
और आज हमारे बीच पसरी है ये कुछ घंटे की जुदाई,
जानती हूं चंद घंटे तुमने बिताए हैं,,
व्यापरिक प्रतिष्ठानों के चक्कर काटते हुए,
जिम्मेदारियों के प्रति तुम्हारी सजगता ही तो
हमारी खुशियों की बुनियाद है,

पर तुम्हारी कल की बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया,
कि क्या मै वाकई हकदार हूं,
उस मान की जो तुम्हारी बातों से मुझे मिला,..
कल कुछ सवाल मन में अटके से रह गए हैं,
आज जब तुम नही हो पास,तब भी मेरे हाथ यंत्रवत चल रहे है,
पर मन उलझा है तुम्हारी ही बातों में,...

हां,माना मैं सभी के किरदार निभा लेती हूं,
"पत्नी, मां, गृहणी, दोस्त, सहभागी, सलाहकार "
तुम कहते हो कैसे जी लेती हूं,..?
मैं एक साथ इतनी जिंदगियां,
जबकि यही सब करते हुए तुम झुंझला जाते हो,...
चिड़चिड़े हो जाते हो,..गुस्सा हो जाते हो,..

तुमने पूछा था मुझसे कहाँ से लाती हो तुम इतनी उर्जा,...
कि जब में लौटकर आता हूं किसी सफर से,
तो तुम पूरे मन से मुस्कुराते हुए स्वागत करती हो मेरा,
जबकि थकी तो तुम भी होती हो,
क्योंकि मेरे साथ ही नही मेरी अनुपस्थिति में भी बखूबी निभाती हो तुम,
घर-परिवार और व्यापार की सारी जिम्मेदारियों को,...

तब मैंने कहा था तुमसे
कि नही है मुझमें इतनी क्षमता कि में वास्तविकता को जी सकूं
इसलिए में जीती हूं कल्पनाओं में
और तुमने कहा
 "मत घसीटो मुझे अपनी कल्पनाओ में अब सो जाओ"
और तुम सो गए,

और सुबह तुम्हारे व्यापारिक सफर पर निकलते ही
मेरे विचारों का ये सफर भी शुरू हो गया,
और नतीजा ये निकाला मैंने कि मैं बहुत कमजोर हूं,
मेरे शरीर की तरह मेरा मन भी अब वास्तविकता के कठोर धरातल के
आर्थिक,मानसिक और शारिरीक आघातों को
सहने की स्थिति में नही है,...

"पर जिम्मेदारियों से पलायन मैंने सीखा नही है",..

इसलिए मैंने बना ली है अपनी कल्पनाओं की एक ऐसी दुनिया,
जहां सिर्फ वो होता है जो मैं चाहती हूं...
हंसती हूं, रोती हूं,खुद से बतियाती हूं,
गुनगुनाती हूं,तुमसे लिपटती हूं,
तुम्हारा आलिंगन,तुम्हारा स्पर्श,
और तुम्हारे सीने से लगकर हर गम भूल जाती हूं मैं,..

उस दुनिया मेँ हर एहसास को जीती हूं,
जो छूट जाते हैं हमसे
समय, परिस्थितियों,तनावों,अभावों,पाबंदियों के दबाव में,
मैं भूल जाती हूं
"लोग क्या कहेंगे"
और जीती हूं सिर्फ अपनी खुशी और गम के लिए,...

और अब कल्पनाओँ के इस लंबे सफर के बाद थककर,
मैं सो रही हूं अब,..
क्योंकि कल जब तुम लौटोगे,
तब मुझे फिर प्रेम,समर्पण,आत्मविश्वास,ताजगी
और अपनी पूर्ण उर्जा के साथ,
अपनी कर्मभूमियानि यथार्थ के कठोर धरातल पर पा सको,
पूरे उत्साह के साथ मुस्कुराता हुआ,....
तुम्हारी,.....प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment