Saturday 25 February 2012

ओ साजन जी,



क्या रूठूं
और
क्या बरसूं,
तुम पर
मैं
ओ साजन जी,..
मैं जो रूठूं
हंस देते हो,
कुछ बोलूं
तो मुसकाते हो,..
प्यार लुटाकर
बिखराते हो,
आंखों से
भरमाते हो,,.
बड़े ही जिद्दी हो
तुम जी,
इतना क्यूं तड़पाते हो,...प्रीति सुराना

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