Wednesday, 22 February 2012

मेरी तनहाई में


मैं
तनहा-तनहा 
रफ्ता-रफ्ता 
तोड़ती हूं 
खुद को,

इस 
उम्मीद पर कि 
कोई आकर 
समेट लेगा 
मुझे,

फिर 
धीरे-धीरे
हौले-हौले 
सिमट जाती हूं 
खुद ही,

मैं
जानती हूं 
कोई नही आने वाला 
यंहा 
मेरी तनहाई में,.....प्रीति

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