Sunday 12 February 2012

सागर की गहराई




मंजिले मालूम हैं,
रास्तों का भी है पता,
हमराह भी थामे हुए है हाथ,
और नियति भी है 
आगे बढ़ना तुम्हारी,

फिर डर क्यों
और देर किसलिए,
क्या हुआ 
जो किनारेों पर
गम के डेरे हैं

जाओ 
कुशल और सक्षम 
तैराक की तरह,
जो तैर कर ही माप लेता है,
सागर की गहराई 
डूबता नही

पर 
मैंने सुना है प्यार के सागर में
जो डूबता है वही पार होता है
और पाता है
खुशियों के किनारे भी,....प्रीति सुराना

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