Thursday, 9 February 2012

"अजब सी लड़ाई"


सागर ने दी है आज दुहाई
प्यासा हूं मैं ही
और प्यास मैने ही सबकी बुझाई,

चंदा ने भी ये गुहार लगाई
बिखेरी छटा चांदनी की पर मेरी ही हो गई
चांदनी से जुदाई,

सूरज भी कहने लगा है आज तो ये
रोशनी मिलती है सबको
पर मैने जान अपनी जलाई,

धरती भी तभी दौड़ी दौड़ी आई
थक गई मैं भी 
बोझ सबका कबसे मैं ही उठाई,

अंबर भला फिर कैसे रहता पीछे
कहने लगा मैं उल्टा लटका
कब तक करूं जग की रखाई,

पेड़-पौधे और हवा भी लड़ बैठे 
क्या हमने नहीं की
सृष्टि की भलाई,

सब के बीच छिड़ी आज य़े
कैसी अजब सी लड़ाई,
सब ने मानवों की अदालत में आज अर्जी लगाई,

सब करने लगेआपस मे कानाफूसी,
पशु-पक्षी करने लगे इनकी जासूसी

फिर मिल गए ये भी इन सबसे,
करेंगे अब हम भी हड़ताल भाई,

जब मानव के सामने ये बात आई
मानव की सारी प्रजाति घबराई,

स्वार्थी मानव ऐसे में क्या करेगा,
आखिर ये हरकत उसी ने सिखाई,

सीख लेता अगर अपनो के लिए जीना,
सहनशीलता,परोपकारिता और भलाई,

पर क्या किया तूने नादान मानव,
सृष्टि में फैला दी ये कैसी बुराई,

कोई आज मुझको इतना बता दो,
अगर ये सच हो तो क्या होगा भाई,

जरा सोचो,
जरा समझो,
ये क्या हो रहा है????
कोई तो सुलझाओ,
ये अजब सी लड़ाई,......प्रीति सुराना

1 comment:

  1. Be misal geet, sur aur saar me. Vastivikta ki aandhi bikher di. sach ka samna kaise ?Hai suljhane ko badi mushkil yeh sachmuch ajeeb kahani . Suraj kabhi der se na aaye, na vayu na chand chandni ko kisi swarth me dikhaye, Jitne hain jeev jantu, vanaspati sub pe Kudrat ki anant maya, sirf manav ko tere rehmo karam ka aabhar nhi. Mere Ishwer pralye jaldi la, dunia ki burayi khatm us se hi hogi. Naman ke sath kavi Priti jee.

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