Thursday, 2 February 2012

तुम्हारे सपने


ऩन्ही जुराबों को बुनते बुनते
अचानक मेरा ध्यान गया
तुम्हारी ओर
कि इन दो सलाईयों की तरह
"तुम" और "वो".

एक अनजानी प्रीत की डोर से
डाल चुके हो फंदे
और जैसे जैसे वक्त
उन फंदों को घटाते बढ़ाते
कभी पाकर कभी खोकर
धीरे धीरे एक नई आकृति प्रकट करेगा
उस भविष्य के लिए जिसे जीना है
तुम दोनो को साथ साथ रहकर
हर सुख दुख को

जैसे कभी ख्वाहिशों का दमन यानि जिंदगी से समझौता,
तो कभी खुशी का मयस्सर होना यानि बहुत कुछ पा लेना,

और फिर
तुम महसूस करोगी
मेरी तरह
अपने आने वाले कल को
जंहा इन सलाईयों की तरह
तुम दोनों का कोई वजूद नही रह जाएगा 
बल्कि
जन्म ले चुकी होगी
तुम्हारी प्रीत की डोर की बुनाई से
एक नई आकृति यानि तुम्हारा जीवन भर का रिश्ता
जो सुरक्षित रखेगा हर सुख दुख में 
तुम्हारे जीवन के उन पलों को
उस कल को 
उस भविष्य को
जिस जन्म देने जा रहे हो "तुम दोनों"

दुआ है मेरी तुम्हे कि
मेरी बुनी इन नन्ही जुराबों की तरह
तुम्हारे बुने सपने भी
प्यारे खुबसूरत और सुरक्षा कवच की तरह होंगे
ठीक वैसे ही जैसे
ये जुराबें मेरे नन्हे के कदमों के लिए
और
तुम्हारे सपने तुम्हारे प्यार भरे जीवन के लिए,....प्रीति

0 comments:

Post a Comment