Saturday, 21 January 2012

मेरा अक्स


मेरे आईने को 
लगाकर ठेस 
तुमने भर दी 
उसमें दरारें
अब जब भी 
देखती हूं 
उसमें चेहरा अपना 
खुद को 
मैं बदशक्ल पाती हूं 
काश 
ठेस की जगह 
ठोकर लगाकर 
तोड़ दिया होता 
मेरा आईना 
कम से कम 
हर टुकड़े में 
मेरा अक्स 
हूबहू 
तो नजर आता,....प्रीति सुराना

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