Saturday 7 January 2012

रिश्तों के समंदर


रिश्तों के समंदर में
जितना चाहो सीख लो तैरना,
ए दोस्त!

अंततः
इस समंदर के बहाव में
भावनाएं रेत के टीलों की तरह 
ढह ही जाती है,...

सपनों की परछाईयां,
कटु यथार्थ की किरणों में
कंहा नजर आती हैं,....?

फिर तुम यह भी बताओ
जिस क्षितिज के किनारे पर बसी बस्ती 
और सीमा पार जाने की तुम बात करते हो,..
वह भी तो महज एक कल्पना है

बिल्कुल
मेरी भावनाओं,सपनों,
और रिश्तों के समंदर की तरह,.....प्रीति

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