Tuesday, 20 December 2011

यादें


इस चमन में कुछ यादें
छूट गई हैं मुझसे,
मैं जानती हूं कि रह रहकर
फिर बहुत याद आएंगी,
क्या समेट लेगा कोई
मेरी इन यादों को,
या यूंही राह पर पड़ी
कदमों तले रौंदी जाएंगी,
या मेरी यादें चीख चीखकर
फिर से किसी को बुलाएंगी,
खैर
पर एहसासों के इस सफर में,
यादों के इस शहर मे,
उम्मीदों के इस चमन में
मैं फिर नहीं आऊंगी,
अब मार डाले मुझे ये यादें,
या फिर मैं खुद ही मिट जाऊंगी,
जो भी हो पर अब दुबारा 
इस राह में मैं फिर नहीं आऊंगी ,......प्रीति

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