Tuesday 29 November 2011

बचपन की सखी



बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?

रूठे जो हमसे पल-पल में,तो भी उसे मनाएंगे..
पर दूर जो वो खुद हो हमसे,तो कैसे हम जी पाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?

दिल की हर एक बात जो कहते,अब वो किसे बताएंगे?
प्यार हमें जो उससे मिला था,वो प्यार कहॉ से पाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?

वो चाहे तो भूलें हमको पर, हम उन्हे भूला न पाएंगे...
बहना सी प्यारी थी वो हमको,अब बहना कहकर किसे बुलाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?

लड़ना-झगड़ना,मिलना-बिछुड़ना,जुदा तो रह न पाएंगे....
जान हमारी थी वो अब,क्या जान बिना जी पाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?.........प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment