बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?
रूठे जो हमसे पल-पल में,तो भी उसे मनाएंगे..
पर दूर जो वो खुद हो हमसे,तो कैसे हम जी पाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?
दिल की हर एक बात जो कहते,अब वो किसे बताएंगे?
प्यार हमें जो उससे मिला था,वो प्यार कहॉ से पाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?
वो चाहे तो भूलें हमको पर, हम उन्हे भूला न पाएंगे...
बहना सी प्यारी थी वो हमको,अब बहना कहकर किसे बुलाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?
लड़ना-झगड़ना,मिलना-बिछुड़ना,जुदा तो रह न पाएंगे....
जान हमारी थी वो अब,क्या जान बिना जी पाएंगे?
बचपन न भूला जाए तो कैसे बचपन की सखी को भूलाएंगे?.........प्रीति सुराना
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