'दलाली' एक शुद्ध व्यापार है जिसमें आपको जो काम खुद करने का समय न हो उसे किसी के माध्यम से करवाया जाता है जिसके बदले एक तय राशि या अंश उसे दिया जाता है जिसे एजेंट या बिचौलिया या दलाल कहते हैं।
सच है *कोयले की दलाली में हाथ काले होते हैं* यानि बुरे कामों का माध्यम बनोगे तो बदनामी के दाग मिलेंगे ही। पर कभी इस पहलू से सोचा आपने कि दलालों की आवश्यकता ही क्यों पड़ी?
मंदिर में भगवान से मिलने गए तो जल्दबाजी में पुजारी को दलाल बना लिया। किसी सरकारी काम में अड़चनें आई तो रिश्वत दे दी, जब भी अटका हुआ काम निकालना हो तो बिचौलियों का सहारा ले लिया। कोयले खदान से बिना छुए नहीं निकाले जा सकते, कितने ही ग्लोब्स पहन लो दाग लग ही जाते हैं, पर मायने ये रखता है कि कोयले निकाले किस उद्देश्य से? चोरी की, स्मगलिंग की या बिना मालिकाना अधिकार के बेच दिया, या मजदूरों को काम दिया, किसी भूखे को रोटी के लिये चूल्हा जलवाया, या खूबसूरत गहनों के लिए हीरे की तलाश की।
जिस तरह गंदगी मिटाने के लिए सफाई खुद न करनी हो तो मशीनों या मजदूरों की जरुरत होती है लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि मजदूर गंदा हो गया, रोटी बनाने के लिए पहले आटे को गूँधना पड़ता है, दीवारों को रंगने के लिए भी रंगों को छूना पड़ता है, फूलों का व्यापार करने के लिए खुशबू के साथ कांटो की चुभन भी मिलती है, पर उद्देश्य अच्छा होने के कारण इनसे जुड़ी कहावतें नहीं बनी।
यकीनन कोयला छुआ है तो हाथ काले होंगे ही, पर याद रखना चाहिए कि कोयले को बुराई का सांकेतिक शब्द बनाकर एक मुहावरा गढ़ा गया है। वास्तव में अर्थ ये है कि *स्वार्थवश बुरे काम का साथ देने वाला व्यक्ति भी बुराई से प्रभावित होगा ही ये अटल सत्य है।* ये मेरी व्यक्तिगत सोच है जरुरी नहीं है कि सभी सहमत हों क्योंकि सभी के विचार तन-मन-धन और जन से प्रभावित होते हैं पर यह पक्ष भी विचारणीय है इसलिए सोचिएगा जरुर कि हम किसी को कोयले की दलाली के लिए विवश तो नहीं कर रहे हैं और हाँ तो उद्देश्य सकारात्मक है या नकारात्मक?
इसका जवाब हम सब के घरों, कार्यक्षेत्र, समाज और देश से संबंधित कार्यों का अवलोकन करने पर स्वतः ही मिल जाएगा, क्योंकि कहीं न कहीं किसी न किसी कोयले की दलाली के जिम्मेदार हम भी हैं और उत्तरदायी ठहराते हैं सिस्टम को, वो सिस्टम जो हम सब से ही मिलकर बना है। जब चिंतन होगा तो चिंता जरूर होगी कि कोयले की दलाली में हाथ काले होते हैं।*
मैंने पूछा
जब जानते हो कि
*कोयले की दलाली में हाथ काले होते हैं*
तो इत्र क्यों नहीं बेचते,
उसने कहा
लोग सीधे-सीधे काम करते होते
तो दलालों की जरुरत क्या थी?
यदि मैंने हाथ काले न किये होते
तो कई गरीबों के घरों में चूल्हे नहीं जलते
और न अनगिनत अमीरों को हीरे नसीब होते,..!
रहा सवाल इत्र का तो दलाली अच्छी हो
तो मित्र बन ही जाते हैं
और जहाँ मित्र वहाँ इत्र ही इत्र!
*डॉ प्रीति समकित सुराना*
बहुत सुंदर
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