Wednesday 15 April 2020

दो किनारों की तरह



समेट लेंगे
अपनों के सारे दर्द
प्रवाहित करेंगे
अपनों में खुशियाँ
बांध लेंगे
अपनों के लिए सब्र का बांध
बहा देंगे
अपनों के मन की सारी मलिनता
सुनो!
अपना जीवन
बना लेंगे हम
नदी की तरह
चाहे जीना क्यों न पड़े
हम दोनों को
नदी के दो किनारों की तरह
साथ भी, दूर भी!
मगर सबसे जरुरी
अपनों के लिए।
है न!

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

5 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 16 अप्रैल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. सामाजिक दूरी। सुन्दर।

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  4. वाह!बहुत खूब!

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  5. बहुत सुंदर अहसास।

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