समेट लेंगे
अपनों के सारे दर्द
प्रवाहित करेंगे
अपनों में खुशियाँ
बांध लेंगे
अपनों के लिए सब्र का बांध
बहा देंगे
अपनों के मन की सारी मलिनता
सुनो!
अपना जीवन
बना लेंगे हम
नदी की तरह
चाहे जीना क्यों न पड़े
हम दोनों को
नदी के दो किनारों की तरह
साथ भी, दूर भी!
मगर सबसे जरुरी
अपनों के लिए।
है न!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 16 अप्रैल 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसामाजिक दूरी। सुन्दर।
ReplyDeleteवाह!बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत सुंदर अहसास।
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