#बोझिल सी है पलकें
भरसक कोशिश भी है
नींद को पुकार रही है
ख़्वाब के इंतज़ार में
वो जानती है ये सच
कि जागती रही अगर
तो भीगने लगेगी ही
दर्द इतने मिले हैं
हकीकत के बाज़ार में
हाँ
पलकें बोझिल हैं
हकीकत के डर से
ख़्वाब के इंतज़ार में,...!
#डॉ.प्रीति समकित सुराना
सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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