धूप का टुकड़ा चुराकर देहरी पे रख आई
छत पे जाके रात से चाँदनी चुरा लाई,....!
खुश हूँ मैं कि प्रकृति है आज दामन में
बीज अमन के बोऊंगी मैं अपने चमन में
लगेगा वक्त जानती हूँ फूल खिलने में
पर यकीन है एक दिन फूटेगी अमराई,
धूप का टुकड़ा चुराकर देहरी पे रख आई
छत पे जाके रात से चाँदनी चुरा लाई,..!
घर के परकोटे हैं ऊँचे डर है चोरों का
मर रही इंसानियत का है शोर जोरों का
हरियाली सत्य की मैं पग-पग उगाऊंगी
अपने आँगन की प्रेम से कर ली सिंचाई
धूप का टुकड़ा चुराकर देहरी पे रख आई
छत पे जाके रात से चाँदनी चुरा लाई,...!
हो बेटियों के मान और सम्मान की रक्षा
और बेटों को भी दूँ संस्कार और शिक्षा
दोनों जब होंगे बराबर जग संतुलित होगा
पढ़ाने जग को ये पाठ मैंने भी की पढ़ाई
धूप का टुकड़ा चुराकर देहरी पे रख आई
छत पे जाके रात से चाँदनी चुरा लाई,...!
चाहत है देश में हो सुख-शांति का बसेरा
फिर से आए सोने की चिड़िया वाला सबेरा
घर, गली, पगडंडियाँ, गाँव, शहर सुरक्षित
नियमों के पालन में हो और थोड़ी कड़ाई
धूप का टुकड़ा चुराकर देहरी पे रख आई
छत पे जाके रात से चाँदनी चुरा लाई,...!
विश्वगुरु फिर बने भारत चाहूँ ये आशीष
शहादत को नमन करते हम झुकाकर शीश
सैनिकों के भी घर रहें आबाद हमेशा
न हो कभी सरहदों पर भी कोई लड़ाई
धूप का टुकड़ा चुराकर देहरी पे रख आई
छत पे जाके रात से चाँदनी चुरा लाई,...!
गुनगुनी बहती हवा और बारिश की कुछ बूंदे,
संदूक में रख ली है मैंने अब कहाँ तन्हाई,...!
प्रीति समकित सुराना
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