Tuesday, 4 February 2020

आँसू चखती हूँ



बच्चों जैसा दिल रखती हूँ
बहते हुए आँसू चखती हूँ

भावशून्य नहीं हो जाऊं कहीं
इसलिए कुछ न कुछ लिखती हूँ

रचने को रची है दुनिया रब ने
मैं अपनी दुनिया रचती हूँ

लोक व्यवहार भला है मेरा
जिसकी जैसी नज़र दिखती हूँ

प्रीत ही लक्ष्य है प्रीत ही ध्येय है
मुखौटों के चलन से बचती हूँ

प्रीति सुराना

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