ओ जिंदगी!
तू है
*सखी री मोरी!*
*फिर क्यों पूछे कौन हूँ मैं?*
सुन न!
*सतरंगी स्याही* को
*शब्द कलश* में डुबाकर
*कहा है कुछ मैंने*
*मेरे अल्फ़ाज़*, *मेरे शब्द* पढ़ना
और समझना मेरे दिल को
क्योंकि
मेरा
*दिल ही दर्पण*
है।
*शून्य और सृष्टि* के
*नीलाम्बर* में
*धुंध के पार* भी
*कभी धूप कभी छाँव* होती है
*वक़्त* ने *अंतर्मन* की
*सूखी स्याही* को
*आँखों के झरने* से भिगो कर
किया है एक बार फिर से
*शब्द स्पर्शन!*
मैं *अपराजिता* हूँ
मुझे समझती हो *केवल तुम!*
*सीप के मोती* के *बंधन* की तरह
तुमसे बंधी मैं
और इस मोती को सहेजे हुए
तुम्हारे *प्रेमाश्रय* में
मेरा सम्पूर्ण *समर्पण।*
जो कभी अकस्मात
कानों में घोल जाता है *मधु श्रव्य*
जो चुपके से कह जाता है *वाह! जिंदगी,..*
तुम दिखाती हो अनेक *रंग जीवन के*,
और
*सफर जिंदगी का* लाता है
अनेक रंग *हास्यम् व्यंग्यम्* के भी
ये आँसू तो *बिन बुलाए मेहमान* होते हैं।
अरे
*आनंदबेला*
*लौट आओ न*
फिर से *कुछ पल के लिए*
*रिश्तों की डोर* से बंधकर
बदली हुई हर *ऋतु संग पर्व*
और
कुछ यादों की *कतरनें* साथ लिए।
ओ
मेरे *समझदार लड्डू*
मेरी जिंदगी,
मेरी जान
जीवन *कागज की नाव* नहीं है
जो डूब गई तो डूब गई
ये तो संघर्ष है
हमें बनना है *समाज के प्रतिबिम्ब*
*कस्तूरी सोपान* से चढ़कर
*तलाश* लेना है
खुशबूदार *मलयगिरि के चंदन।*
हाँ!
ये विष से लिपटे चंदन ही तो हैं
*हमारे प्रेरणास्रोत*
जो देते हैं प्रेरणा कि
परिस्थितियाँ कैसी भी हो
मत छोड़ना अंतिम सांस तक
अपने *मौन के गीत* में
*जय हिन्द* का गान
और जलाए रखना अपना
*नामदीप*
जिंदगी के साथ भी,
जिंदगी के बाद भी।
सुनो!
खुशियाँ और हमारी जिंदगी
किसी और की मोहताज नहीं
चाहिए सिर्फ जीने की चाह
और
जिंदगी
तू देगी साथ मेरा
ये है यकीन मेरा।
सखी री मोरी!
प्रीति सुराना
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