मैं प्रीत के गीत का हूँ अन्तरा,
जीवंत हूँ स्वप्न से हराभरा,...!
माना चुनी है मैंने राहें कठिन
मुश्किलों में कट रहे हैं पलछिन
है दिल मेरा हौसले से भरा
मैं प्रीत के गीत का हूँ अन्तरा,
जीवंत हूँ स्वप्न से हराभरा,...!
नफरतों को छोड़कर आगे बढ़ी
धीरे-धीरे ही सही पर्वत चढ़ी
वो जिसका शिखर है हिम भरा
मैं प्रीत के गीत का हूँ अन्तरा,
जीवंत हूँ स्वप्न से हराभरा,...!
पीर को अब तो पिघलना चाहिए
हिम शिखर को भी तो गलना चाहिए
मेरा समर्पण पूर्ण है, प्रीत से भरा
मैं प्रीत के गीत का हूँ अन्तरा,
जीवंत हूँ स्वप्न से हराभरा,...!
राष्ट्रहित जीवन समर्पण लक्ष्य है
'राष्ट्र जागरण धर्म हमारा' कथ्य है
कथनी-करनी एक हो देना दुआ
मैं प्रीत के गीत का हूँ अन्तरा,
जीवंत हूँ स्वप्न से हराभरा,...!
प्रीति समकित सुराना
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति
प्रदेश उपाध्यक्ष
राष्ट्रीय कवि संगम
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