Tuesday, 4 February 2020

मन मर्जियाँ

हाँ!
मैं उड़ना चाहती हूँ
बनकर एक पतंग
खुले आकाश में

ताकि 
पहुँच सकूँ उत्तरायण में 
उदित होते दिवाकर तक
सपनों की अर्जियाँ लेकर,...!

पर
शर्त सिर्फ इतनी सी है
डोर उन्हीं हाथों में हो
जो न पेंच लड़ाए
न मुझे कटने-फटने दे,

सुनो!
तुम संभाल लोगे न मुझे
मैं उड़ना चाहती हूँ
अपनी मन मर्जियाँ लेकर,...!

डॉ. प्रीति समकित सुराना
(मकर संक्रांति की बधाई💐)

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