Thursday, 2 January 2020

बेमौसम, बेहद, बेशुमार बारिश

बेमौसम, बेहद, बेशुमार बारिश 

कई बार
रोकने पर भी नहीं रुकते आँसू,..!
तब लाख कोशिशें
आंखों में कुछ चले जाने का बहाना,
प्याज़ काटते हुए जलन का बहाना,
गली में जल रहे कूड़े से निकलते धुएँ से एलर्जी का बहाना,
छींक, सर्दी, या इन्फेक्शन आ बहाना,..!

उल्टे-सीधे 
कितने हीले-हवाले
पर नहीं रुकना है 
तो नहीं रुकते ये आँसू,..
तब काम आते हैं
मेरा तकिया, मेरी रजाई, 
मेरा बिस्तर और बिस्तर पर 
सालों से तय मेरा वो कोना..!

तब भी 
आसान नहीं होता
सब से नजरें चुराकर
सोने के बहाने रोना।
और ज्यादा मुश्किल तब होती है
जब अपने साथ हों,
हँसना-हँसाना जरूरी हो,
और मजबूरी हो दर्द सहना या छुपाना,..!

बस ठीक उसी वक्त
न कोई कारण, न कोई बहाना
दौड़कर बारिश में भीग जाना, 
जोर-जोर से खिलखिलाना,
रोते जाना बिना छुपाए आँसू,
और सबके साथ हँसना-हँसाना,
कितना सुखद लगता है तब
बेमौसम, बेहद, बेशुमार बारिश का आना,..!

सुनो!
एक गुजारिश
बस तुम 
मेरे सामने मत आना
क्योंकि 
आदत है तुम्हारी
बिना कुछ कहे 
मेरा हाल जान जाना,..!

प्रीति सुराना

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