मेरे अफसाने में
ज़ख्म ताज़े, हरे या नए हों या फिर दर्द हो पुराने में,
पर मौसम ने दिया है हमेशा मेरा साथ उसे छुपाने में।
अपने अश्क छुपाऊं कैसे मैं सोच ही रही थी तभी,
बेमौसम बरसकर बादल शामिल हुए मेरे बहाने में।
बात अगर निकली है तो चाहे कहीं से भी होकर गुजरे,
पर इतना है यकीन कि पहुँचेगी तो सही ठिकाने में।
किससे करें शिकायत कि फैला रहे हैं मेरे दर्द के किस्से,
जब दोस्तों में ही छुपे बैठे हैं कई दुश्मन इस जमाने में।
मेरे बातों में अपनी कहानी ढूँढने लगते हैं लोग जाने क्यूँ,
लेकिन सच यही है 'प्रीत' बस मैं ही हूँ मेरे अफसाने में।
प्रीति सुराना
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