Thursday, 7 November 2019

जख्म

नए जख्म सबको दिखते बहुत हैं
पुराने जख्म दिल में दुखते बहुत हैं

जख्म तो आखिर जख्म ही होते हैं
पर कांटों से मन में गड़ते बहुत हैं

उलझने पुरानी सुलझती नहीं है
नए लोग आकर उलझते बहुत हैं

समय की आदत चलते ही जाना है
और कमजोर राही रुकते बहुत हैं

इधर-उधर की जो सुनते है अकसर
सही बात पर वो ही चुकते बहुत हैं

सुना है कद जिनका होता है ऊंचा
विनम्रता से वो ही झुकते बहुत हैं

मैं ने ये सोचा है 'प्रीत' अब न रोकूँगी
ये आंसू सूखकर तो चुभते बहुत हैं

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.

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