*दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ*
दीपावली, दिवाली या दीवाली शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिन्दू त्यौहार है। दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है जो ग्रेगोरी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है।
दीवाली
भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्हात् (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।
दीवाली के दिन नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश होता है।
दीवाली नज़ारों, आवाज़ों, कला, और स्वाद का त्योहार है। जिसमें प्रांतानुसार भिन्नता पायी जाती है।
*दीवाली पर 50 साल बाद बन रहा है लक्ष्मी योग, धन प्राप्ति के लिए इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा।*
लगभग पचास साल बाद दिवाली पर रविवार को लक्ष्मी योग बन रहे हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, धान्य, सुख, शांति और समृद्धि के मंगलयोग के बीच देवी भगवती का आगमन होगा। सायंकालीन दिवाली पूजन के लिए इस बार डेढ़ घंटा प्राप्त होगा लेकिन दिन में कारोबारी दृष्टि से दिवाली पूजन के कई मुहूर्त हैं।
*अपने कुल के साथ लक्ष्मी का आगमन*
कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या अर्थात दिवाली लक्ष्मी जी का प्राकट्य दिवस है। वह श्रीनारायण के साथ पृथ्वी पर आती हैं। उनके साथ उनका पूरा कुल होता है। यानी समस्त देवी, देवता, ग्रह, नक्षत्र। यही ऐसा पर्व है, जब त्रिदेवियां और त्रिदेव अपने कुल के साथ पृथ्वी पर आते हैं। सबसे अंत में महानिशाकाल में काली कुल आता है। इसलिए इसको सबसे बड़े पर्व की संज्ञा दी गई है। पांच पर्वों की श्रृंखला का यह तीसरा पर्व है। इस अमावस्या को सबसे बड़ी अहोरात्रि कहा गया है।
लगभग पचास साल बाद दिवाली पर रविवार को लक्ष्मी योग बन रहे हैं। विद्या, बुद्धि, विवेक, धन, धान्य, सुख, शांति और समृद्धि के मंगलयोग के बीच देवी भगवती का आगमन होगा।
सायंकालीन दिवाली पूजन के लिए इस बार डेढ़ घंटा प्राप्त होगा लेकिन दिन में कारोबारी दृष्टि से दिवाली पूजन के कई मुहूर्त हैं।
*पूजन महत्व और स्थिर लग्न*
दिवाली पूजन में स्थिर लग्न का महत्व होता है। ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत के मुताबिक शुभ कार्यों के लिए स्थिर लग्न ही सर्वश्रेष्ठ होता है। स्थिर लग्न में पूजा करने से लक्ष्मी जी का स्थायी वास होता है। दरिद्रता की समाप्ति होती है।
*अमावस्या दो दिन*
दिवाली पूजन के समय चन्द्रमा का तुला राशि में प्रवेश हो जायेगा और शुक्र पहले से ही तुला राशि में है। ज्योतिष में इसे लक्ष्मी योग कहते हैं। धन, समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला लक्ष्मी योग पचास साल बाद आ रहा है। अमावस्या भी दो दिन रहेगी। काफी समय बाद धन त्र्योदशी, रूप चतुर्दशी और कार्तिक अमावस्या ( तीनों ही पर्व) दो दिन के रहे हैं।
*घरों और व्यावसायिक स्थलों पर पूजन मुहूर्त*
फैक्टरी और कारखाने में पूजन : 27 अक्तूबर को सुबह 8 से 10.30 (स्थिर लग्न वृश्चिक) और अपराह्न 2.10 से 3.40 बजे तक (स्थिर लग्न कुंभ)
अमावस्या प्रारम्भ : 27 अक्तूबर दोपहर 12.33 बजे से
अमावस्या समाप्त : 28 अक्तूबर को प्रात: 09.08 बजे
प्रदोषकाल: शाम 5.36 से रात 8.11 बजे तक
*दुकानों में पूजन का समय (खाता-बही)*
-सायं 6.40 से सायं 8.40 बजे तक
-घरों में लक्ष्मी पूजन का समय
-27 अक्तूबर को सायं 6.30 से
-रात्रि 8.30 बजे तक
*दो विशेष मुहूर्त*
-सायं 6.42 से 8.37 बजे तक ( वृषभकाल) ’ प्रात: 10.26 से दोपहर 12.32 बजे तक (धनु लग्न)
*महानिशा पूजन (काली)*
मध्यरात्रि उपरांत 1.15 से 3.25 बजे तक (सिंह लग्न)
(ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत, पंडित विष्णु दत्त शास्त्री, पंडित सुरेंद्र शर्मा, पंडित आनंद झा)
*पूजन कैसे करें*
’लक्ष्मी जी की अकेले पूजा नहीं करनी चाहिए वरन श्रीनारायण के साथ करें’ लक्ष्मी जी की पूजा उनके गरुड़ पर सवारी का ध्यान करके करें
*इस क्रम में करें पूजा*
सर्वप्रथम गुरु ध्यान, गणपति, शिव, श्रीनारायण, देवी लक्ष्मी, श्रीसरस्वती, मां काली, समस्त ग्रह, कुबेर, यम और शांति मंत्र।
*व्यापारी वर्ग यह करें*
व्यापार वृद्धि के लिए 5 कौड़ी 5 कमलगट्टे देवी को अर्पित करें।
*क्या करें*
लक्ष्मी जी को अनार और कमल पुष्प अवश्य चढाएं
*यह पाठ करें*
कनकधारा, देवी सूक्तम ( 5 या 11 बार),
श्रीसुक्तम ( 5 या 11 बार),
श्रीलक्ष्मी सहस्त्रनाम,
विष्णु सहस्त्रनाम,
श्रीदुर्गा सप्तशती का पांचवा या 11 वां अध्याय। नील सरस्वती स्तोत्र
(विद्यार्थियों के लिए),
गणपति के लिए संकटनाशन स्तोत्र
मंत्र प्रतिष्ठान और खाता-बही पूजन-
ऊं श्रीं ह्रीं नम:
धन प्राप्ति
ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नम:
विद्या प्राप्ति
ॐ ऐं
व्यापार वृद्धि
ॐ गं गं श्रीं श्रीं श्रीं मातृ नम:
लक्ष्मी पूजन
ऊं सौभाग्यप्रदायिनी, रोगहारिणी, कमलवासिनी, श्रीप्रदायिनी महालक्ष्मये नम: 11 बार अवश्य पढ़ें ।
*जैनों के लिए विशेष त्योहार दीवाली*
*पर्व है तीर्धंकर महावीर के निर्वाण का,
*पर्व है गौतम स्वामी के केवलज्ञान का,
*पर्व है ऋद्धि सिद्धि का,
*पर्व है मॉ महालक्ष्मी की साधना का,
*पर्व है माँ सरस्वती की आराधना का,
*पर्व है आत्मदीपो की दीपमालिकाओ का,
*आप सभी को भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव एवं दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक *शुभकामनाएँ एवं मंगलकामनाएँ।*
*संकलनकर्ता*
*संस्थापक एवं संपादक*
*डॉ. प्रीति समकित सुराना*
15-नेहरू चौक, वारासिवनी (मप्र)
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