शुक्रिया जिंदगी
वो देखो चाँद!
आज अधूरा है
बढ़ेगा
पूरा होगा
पर कभी नहीं होता दुखी
ये जानते हुए भी
कि अगले ही दिन से
फिर घटना है
नहीं है उसे कोई शिकायत
प्रकृति के इस अनूठे नियम से
वो खुश होता है
ये सोचकर
कि घटता बढ़ने के लिए है
अमावस में छुपता
पूनम में जगमगाने के लिए है
उसे पता है
चातक का प्रेम
समुद्र के ज्वार से निकली अनुपम निधियाँ
भाटे के साथ बह जाने वाले अनेक विषाद और मलिनता
अपने दागों को बुरा नहीं मानता
क्योंकि दूर से दिखने वाले वो काले धब्बे
चाँद पर जल और वायु की उम्मीद का पर्याय है
वो खुश रहकर कायम है सृष्टि में
क्योंकि सकारात्मकता के साथ
परिचित है अपने अस्तित्व की अनिवार्यता से भी,!!
सुनो!
तुम्हें मेरा चाँद कहना भी मुझे उस चाँद को देखकर देता है जीने का हौसला
तमाम अनपेक्षित परिस्तिथियों से जूझने के बाद भी,..!
शुक्रिया जिंदगी मेरे होने के लिए,...!
प्रीति सुराना
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